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१९ चेइयथय-सुत्त [ 'अरिहंत-चेइयाणं'-सूत्र ]
अरिहंत-चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं ।
वंदण-वत्तियाए पूअण-वत्तियाए सकार-वत्तियाए सम्माणवत्तियाए बोहिलाभ-वत्तियाए निरुवसग्ग-वत्तियाए,
सद्धाए मेहाए धिईए धारणाए अणुप्पेहाए वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं । शब्दार्थअरिहंत-चेइयाणं-अर्हत्-चैत्योंके, | बोहिलाभ-वत्तियाए-बोधिलाभके अर्हत् प्रतिमाओंके ।
निमित्तसे, बोधिलाभका निमित्त चैत्य-बिम्ब, मूर्ति अथवा प्रतिमा।
लेकर। करेमि-करता हूँ, करना चाहता हूँ।
निरवसग्ग - वत्तियाए - मोक्षके
निमित्तसे, मोक्षका निमित्त काउस्सग्ग-कायोत्सर्ग। लेकर। बंदण-वत्तियाए-वन्दनके निमि- | सद्धाए-श्रद्धासे, इच्छासे । त्तसे, वन्दनका निमित्त लेकर। | मेहाए-मेधासे, प्रज्ञासे ।
धिईए-धृतिसे, चित्तकी स्वस्थतासे। पूअण-वत्तियाए-पूजनके निमि
धारणाए-ध्येयका स्मरण करनेसे, त्तसे, पूजनका निमित्त लेकर।।
धारणासे । सक्कार - वत्तियाए - सत्कारके
अणुप्पेहाए - बार बार चिन्तन निमित्तसे, सत्कारका निमित्त
करनेसे, अनुप्रेक्षासे। लेकर।
वड्ढमाणीए - वृद्धि पाती हुई, सम्माण - वत्तियाए - सम्मानके | __ बढ़ती हुई। निमित्तसे, सम्मानका निमित्त ठामि काउस्सग्गं - मैं कायोत्सर्ग लेकर ।
करता हूँ।
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