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मङ्गल और कल्याणके गृहरूप हैं, ऐसे श्रीपार्श्वनाथको में वन्दन
करता हूँ ||१||
[ श्रीपार्श्वनाथ प्रभुके नामसे युक्त ] विसहर - फुलिंग नामक मन्त्रका जो मनुष्य नित्य स्मरण करता है, उसके दुष्टग्रह, महारोग, मारण-प्रयोग अथवा महामारी आदि उत्पात और दुष्टज्वर शान्त हो जाते हैं ||२||
यह मन्त्र तो दूर रहे, हे पार्श्वनाथ ! आपको किया हुआ प्रणाम ही बहुत फल देनेवाला होता है । उसके द्वारा मनुष्य और तिर्यञ्च — गति में स्थित जीव किसी भी प्रकारके दुःख तथा दुर्दशा - को नहीं प्राप्त करते हैं || ३ ||
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चिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्षसे भी अधिक शक्ति धारण करनेवाले आपके सम्यक्त्वकी प्राप्ति होनेपर जीव सरलतासे मुक्तिपदको प्राप्त करते हैं ||४||
मैंने इस प्रकार भक्तिसे भरपूर हृदयसे आपकी स्तुति की है, अतएव हे देव ! हे महायशस्विन् ! हे पार्श्वजिनचन्द्र ! मुझे प्रत्येक भवमें अपनी बोधि - अपना सम्यक्त्व प्रदान करो ||५|| सूत्र - परिचय -
इस स्तोत्र में श्रीपार्श्वनाथ भगवान्के गुणोंकी स्तुति बहुत सुन्दर रीति से की गयी है और इसका उपयोग चैत्यवन्दनमें स्तवन के रूपमें होता है । नव - स्मरणमें इसकी संख्या दूसरी है ।
इस स्तोत्रको रचना के विषय में निम्न कथा प्रचलित है- भद्रबाहुस्वामी के वराहमिहिर नामका एक भाई था । उसने भी जैन- दीक्षा ली थी;
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