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________________ ६४ मङ्गल और कल्याणके गृहरूप हैं, ऐसे श्रीपार्श्वनाथको में वन्दन करता हूँ ||१|| [ श्रीपार्श्वनाथ प्रभुके नामसे युक्त ] विसहर - फुलिंग नामक मन्त्रका जो मनुष्य नित्य स्मरण करता है, उसके दुष्टग्रह, महारोग, मारण-प्रयोग अथवा महामारी आदि उत्पात और दुष्टज्वर शान्त हो जाते हैं ||२|| यह मन्त्र तो दूर रहे, हे पार्श्वनाथ ! आपको किया हुआ प्रणाम ही बहुत फल देनेवाला होता है । उसके द्वारा मनुष्य और तिर्यञ्च — गति में स्थित जीव किसी भी प्रकारके दुःख तथा दुर्दशा - को नहीं प्राप्त करते हैं || ३ || -- चिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्षसे भी अधिक शक्ति धारण करनेवाले आपके सम्यक्त्वकी प्राप्ति होनेपर जीव सरलतासे मुक्तिपदको प्राप्त करते हैं ||४|| मैंने इस प्रकार भक्तिसे भरपूर हृदयसे आपकी स्तुति की है, अतएव हे देव ! हे महायशस्विन् ! हे पार्श्वजिनचन्द्र ! मुझे प्रत्येक भवमें अपनी बोधि - अपना सम्यक्त्व प्रदान करो ||५|| सूत्र - परिचय - इस स्तोत्र में श्रीपार्श्वनाथ भगवान्‌के गुणोंकी स्तुति बहुत सुन्दर रीति से की गयी है और इसका उपयोग चैत्यवन्दनमें स्तवन के रूपमें होता है । नव - स्मरणमें इसकी संख्या दूसरी है । इस स्तोत्रको रचना के विषय में निम्न कथा प्रचलित है- भद्रबाहुस्वामी के वराहमिहिर नामका एक भाई था । उसने भी जैन- दीक्षा ली थी; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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