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चिठ्ठउ - रहे ।
दूरे-दूर | तो - (यह ) मन्त्र । तुज्झ आपको किया हुआ । पणामो- प्रणाम ।
वि-ही ।
बहुफलो - बहुत फल देनेवाला । होइ - होता है ।
वि-भी ।
जीवा - जीव पावंति - न नहीं ।
|
- प्राप्त करते हैं ।
इअ - इस प्रकार ।
संयुओ - स्तुति की है । महायस ! - हे महायशस्विन् !
नर- तिरिए - मनुष्य ( गति ) भक्ति - भर - निब्भरेण - भक्ति से
और तिर्यञ्चगतिमें ।
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दुक्ख - दोगच्चं - दुःख दुर्दशाको ।
- प्राप्त करते हैं ।
पावंति - अविग्घेणं - सरलता से ।
जीवा - जीव ।
अयरामरं
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तथा
स्थानको मुक्तिपदको ।
,
ठाणं- अजरामर
हिअएण - हृदयसे ।
ता-अत एव ।
देव ! - हे देव !
दिज्ज-प्रदान करो ।
तुह- - आपका ।
सम्मत्ते लद्धे-सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति बोहिं बोधि, सम्यक्त्व ।
भवे भवे - प्रत्येक भवमें ।
भरपूर ।
भक्ति-भक्ति । भर-समूह |
निब्भर-भरा हुआ ।
होनेपर | चिंतामणि कष्पपायव- भहिएचिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्षसे भी अधिक ।
अर्थ-सङ्कलना
जो सम्पूर्ण उपद्रवों को दूर करनेवाले हैं, भक्तजनोंके समीप हैं, कर्म - समूहसे मुक्त बने हुए हैं, जिनका नाम - स्मरण सर्पके विषका नाश करता है, तथा मिध्यात्व आदि दोषोंको दूर करता है और जो
पास जिणचंद ! हे पार्श्वजिनचन्द्र ! जिनेश्वरोंमें समान पार्श्वनाथ !
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चन्द्र
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