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तुह सम्म लद्धे, चिंतामणि- कप्पपायव-व्भहिए । पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ||४॥ इअ संधुओ महायस ! भत्ति-भर- निव्भरेण हिअएण । ता देव ! दिज्ज बोहिं भवे भवे पास - जिणचंद ! ||५||
शब्दार्थ
उवसग्गहरं - उपद्रवोंको दूर करने - | कंठे
वाले |
पासं - समीप, भक्तजनोंके समीप । पासं-तेईसवें तीर्थङ्कर श्रीपार्श्वनाथ
भगवान्को ।
हुए 1
वंदामि - मैं वन्दन करता हूँ । कम्म - घण - मुक्कं - कर्म - समूहसे मुक्त बने कम्म - आत्माकी शक्तियोंका आवरण करनेवाली एक प्रकार के पुद्गलकी वर्गणा । घण - समूह | मुक्क - छूटे हुए, रहित । विसहर - विस- निन्न। सं - सर्पके करनेवाले,
नाश
विषका मिथ्यात्व आदि दोषोंको दूर करनेवाले |
मंगल-कल्लाण - आवासं - मङ्गल
और कल्याणके गृहरूप | विसहर - फुलिंग - मंतं- 'विसहरफुलिंग' नामक मन्त्रको ।
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धारण
धारेइ - कण्ठमें करता है, स्मरण करता है ।
जो-जो ।
|सया - नित्य ।
मणुओ - मनुष्य |
तस्स - उसके ।
गह-रोग-मारी - दुट्टुजरा — ग्रहचार, महारोग, मारण-प्रयोग अथवा महामारी आदि उत्पात तथा विषमज्वर | गह-ग्रहचार, ग्रहोंका अनुचित प्रभाव । रोग - सोलह महारोग | मारी - अभिचार या मारण-प्रयोगसे सहसा फूट निकलनेवाले रोग अथवा
महामारी | दुट्टजरा - दुष्ट
विषमज्वर,
ज्वर, कफज्वर, सन्निपात आदि ।
जंति हो जाते हैं । उवसामं - शान्त |
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