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शब्दार्थनमो-नमस्कार हो ।
आचार्य, उपाध्याय तथा सर्वअर्हत्-सिद्धाचार्योपाध्याय- साधुओंको। सर्वसाधुभ्यः-अरिहन्त, सिद्ध, । अर्थ-सङ्कलना
अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व-साधुओंको नमस्कार हो। सूत्र-परिचय
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इस सूत्रसे पञ्चपरमेष्ठीको नमस्कार किया जाता है ।
१७ उवसग्गहर-थोत्तं __ [उपसर्गहर-स्तोत्र]
मूल
[ गाहा ] उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म--घण--मुकं । विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण--आवासं ॥१॥ विसहर-फुलिंग-मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ। तस्स गह-रोग-मारी-दुट्ठजरा जंति उवसामं ॥२॥ चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नर--तिरिएसु विजीवा, पावंति न दुक्ख--दोगचं ॥३॥
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