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प्रश्न-अरिहन्त भगवान् चरमदेह ( अन्तिम शरीर ) छोड़नेके बाद कौनसा
स्थान प्राप्त करते हैं ? उत्तर-अरिहन्त भगवान् चरमदेह छोड़नेके बाद जहाँ किसी प्रकारका
उपद्रव नहीं, जहाँ किसी प्रकारकी अस्थिरता नहीं, जहाँ किसी तरहका रोग नहीं, जहाँ अन्त आनेकी कोई शक्यता नहीं, जहाँ थोड़ा-सा भी क्षय नहीं, जहाँ किसी भी प्रकारको पीड़ा नहीं और जहाँ जानेके पश्चात् संसारमें पुनः वापस आना नहीं पड़ता,
ऐसा सिद्धिगति नामका स्थान प्राप्त करते हैं। प्रश्न-द्रव्यजिनोंकी किस रीतिसे वन्दना-स्तुति की हुई है ? उत्तर-अतीत कालमें जो जिन हो गये हों, भविष्यकालमें जो जिन होने
वाले हों और वर्तमानकालमें जो विद्यमान हों, उन सबकी मन,
वचन और कायसे वन्दना-स्तुति की हुई है। प्रश्न-इस तरह भावजिन तथा द्रव्यजिनोंकी वन्दना-स्तुति करनेका फल
क्या है ? उत्तर-दर्शन-गुणकी शुद्धि और उससे उत्तरोत्तर आत्माका विकास ।
१४ सव्व-चेइयवंदरण-सुत्त
[ 'जावंति चेइयाई'-सूत्र ]
[ गाहा ] जावंति चेइयाई, उड्ढे अ अहे अ तिरिअलोए अ । सव्वाई ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई ॥१॥
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