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शरण प्रदान करते हैं। और बोधि प्राप्त कराते हैं। ऐसे पाँच
हेतुओंसे अरिहन्त भगवान्की उपयोगिता सिद्ध होती है। प्रश्न-अरिहन्त भगवानोंकी विशिष्ट उपयोगिता कितने हेतुओंसे सिद्ध होती है ? उत्तर-पाँच हेतुओंसे। प्रश्न-वह किस प्रकार ? उत्तर-अरिहन्त भगवान् धर्मका दान करते हैं; अर्थात् सर्वविरति और
देशविरतिरूप चारित्र-धर्म प्रदान करते हैं। धर्मकी देशना देते हैं; अर्थात् प्रौढ प्रभाववाली चमत्कारिक वाणीद्वारा धर्मका रहस्य समझाते हैं । धर्मके नायक बनते हैं; अर्थात् चारित्र-धर्मको प्राप्त होते हैं, उसका निरतिचार पालन करते हैं और उसका अन्योंको दान देते हैं। धर्मके सारथी बनते हैं, अर्थात् धर्मसङ्घका कुशलतापूर्वक सञ्चालन करते हैं; और धर्मके चतुरन्त चक्रवर्ती बनते हैं। अर्थात् चार गतिको नष्ट करनेवाले धर्मचक्रका प्रवर्तन करते हैं । इस प्रकार इन पांच हेतुओंसे अरिहन्त भगवानोंकी विशिष्ट उप
योगिता सिद्ध होती है। प्रश्न-अरिहन्त भगवानोंका स्वरूप कैसा है ? उत्तर-अरिहन्त भगवान् कभी नष्ट न हो, ऐसे केवलज्ञान और केवल
दर्शनवाले होते हैं तथा छद्मस्थतासे रहित होते हैं। जिनके
ज्ञानादिगुणोंके आगे घातिकर्मका आवरण हो, वे छमस्थ कहलाते हैं । प्रश्न-अरिहन्त भगवान् मुमुक्षुओंका विकास किस सीमातक करते हैं ? उत्तर-अरिहन्त भगवान् रागादि दोषोंको जीतकर जिन बने हुए हैं,
अतः मुमुक्षुओंको भी रागादिदोषसे जिता देते हैं; वे संसार-समुद्र तिरकर तोर्ण बने हुए हैं, अतः मुमुक्षुओंको भी संसार-सागरसे तिरा देते हैं; वे अज्ञानका नाशकर बुद्ध बने हुए हैं, अतः मुमुक्षुओंको भी बोध प्राप्त कराते हैं; तथा घातिकर्मका नाशकर मुक्त बने हुए हैं, अतः मुमुक्षुओंको भी घातिकर्मसे मुक्त बनाते हैं ।
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