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उत्तर-जो पुरुषोंमें उत्तम गन्धहस्तीके सदृश प्रभावशाली हो । जैसे गन्ध
हस्तीका आगमन होते ही उस प्रदेशसे छोटे हाथी भग जाते हैं, वैसे ही अरिहन्त भगवानोंका विहार होते ही उस प्रदेशसे अतिवृष्टि,
दुष्काल, महामारी आदि सात प्रकारकी ईतियाँ भग जाती हैं । प्रश्न- अरिहन्त भगवान् लोकके लिए किस तरह उपयोगी होते हैं ? उत्तर-अरिहन्त भगवान् लोकोत्तम होते हैं, अतः अनेक रीतिसे उपयोगी
होते हैं। प्रश्न-उनके कुछ उदाहरण देंगे ? उत्तर-अवश्य । अरिहन्त भगवान् लोकके नाथ बनते हैं अर्थात् रक्षण करने
योग्य सर्व-प्राणियोंका योग-क्षेम करते हैं ( योग अर्थात् अप्राप्यवस्तु प्राप्त करा देना और क्षेम अर्थात् प्राप्तवस्तुका संरक्षण करना । )
और वे लोकहितकारी बनते हैं, अर्थात् सम्यक्प्ररूपणा द्वारा व्यवहारराशिमें आगत सर्वजीवोंका हित करते हैं । तथा वे लोकप्रदीप होते हैं, अर्थात् सर्व संज्ञी प्राणियोंके हृदयसे मोहका गाढ़ अन्धकार दूर करके उन्हें सम्यक्त्व प्रदान करते हैं और वे लोकप्रद्योतकर भी होते हैं, अर्थात् चौदह पूर्वधरोंके भी सूक्ष्म सन्देहोंको दूर करके, उन्हें विशेष बोध देकर ज्ञानका प्रकाश करते हैं। इस
प्रकार अरिहन्त भगवान् लोकके लिये अनेक प्रकारसे उपयोगी होते हैं। प्रश्न-अरिहन्त भगवानोंकी उपयोगिता कितने हेतुओंसे सिद्ध होती है ? उत्तर- पांच हेतुओंसे । प्रश्न- वह किस प्रकार ? उत्तर-अरिहन्त भगवान् अभयदान देते हैं; अर्थात् प्राणियोंको सात
प्रकारके भयोंसे मुक्त करते हैं । चक्षुदान देते हैं; अर्थात् आध्यात्मिक-जीवके लिये आवश्यक श्रद्धा उत्पन्न करते हैं । मार्गका दर्शन कराते हैं; अर्थात् कर्मका विशिष्ट क्षयोपशम हो ऐसा मार्ग बताते हैं । शरण प्रदान करते हैं ; अर्थात् तत्त्वचिन्तनरूप सच्चा
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