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सूत्र-परिचय
इस सूत्रका उपयोग भिन्न-भिन्न समयपर किये जानेवाले चैत्यवन्दनके प्रसङ्गपर होता है । इसकी पहली गाथामें चौबीस जिनवरोंकी स्तुति की गयी है, दूसरी गाथामें तीर्थङ्कर किस भूमिमें पैदा होते हैं. उनका संघनन ( शरीररचना ) कैसा होता है, उनकी उत्कृष्ट और जघन्य संख्या कितनी होती है तथा उस समय केवलज्ञानी और साधु कितने होते हैं, इसका वर्णन किया है । तीसरी गाथामें पाँच सुप्रसिद्ध तीर्थों के मूल-नायकोंका वन्दन किया गया है। उसमें पहला नाम श्रीशत्रुञ्जयगिरिका है जहाँ श्रीआदिनाथ भगवान् विराजते हैं। दूसरा नाम श्रीउज्जयन्तगिरि अर्थात् गिरनारका है जहाँ श्रीनेमिनाथप्रभु विराजमान हैं । तीसरा नाम सत्यपुर अर्थात् साँचोरका है, जहाँपर श्रीमहावीर-जिनेश्वर विराजित हैं । चौथा नाम भृगुकच्छ अर्थात् भरुचका है जहाँ श्रीमुनिसुव्रतस्वामी विराजमान हैं और पाँचवाँ नाम मथुराका है कि जहाँपर एक समय श्रीपार्श्वनाथप्रभुकी भव्य चमत्कारिक मूर्ति विराजमान थी। चौथी गाथामें शाश्वत चैत्योंकी संख्या गिनकर उनकी वन्दना की गयी है तथा पाँचवीं गाथामें शाश्वत बिम्बोंकी संख्या गिनकर उनकी वन्दना की है। .
यह चैत्यवन्दन छन्दोबद्ध होनेसे सुन्दर-पद्धतिसे गाया जाता है। इसकी भाषा अपभ्रंश है।
१२ तित्थवंदरण-सुत्त
[ 'जं किंचि'-सूत्र ]
[ गाहा ] जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाई जिणबिंबाई, ताइं सव्वाइं वंदामि ॥१॥
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