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४८ शब्दार्थजं-जो।
माणुसे लोए-तिर्यग्लोकमें, किंचि-कोई।
मनुष्यलोकमें। नाम-यह पद वाक्यका अलङ्कार जाई-जितने।
जिबिंबाइं-जिनबिम्ब । तित्थं-तीर्थ ।
ताई-उन । सग्गे-देवलोकमें, स्वर्ग में । सव्वाई-सबको। पायालि-पातालमें !
वंदामि-मैं वन्दन करता हूँ ! अर्थ-सङ्कलना
स्वर्ग, पाताल और मनुष्यलोकमें जो कोई तीर्थ हों और जितने जिनबिम्ब हों, उन सबको मैं वन्दन करता हूँ। सूत्र-परिचय
यह सूत्र तीनों लोकमें स्थित सर्वतीर्थ और सर्व जिनबिम्बोंकी वन्दना करनेके लिये उपयोगी है ।
१३ सक्कत्थय-सत्त
[ 'नमोत्थु णं'-सूत्र ] मूल--
नमोत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं ॥१॥ आइगराणं तित्थयराणं सयं-संबुद्धाणं ॥२॥
पुरिसुचमाणं पुरिस-सीहाणं पुरिस-वरपुंडरीआणं पुरिस-वरगंधहत्थीर्ण ॥३॥
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