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केसर चन्दन भर्या कचोलां, कस्तूरी बरासोजी, पहेली पूजा अमारी होजो, ऊगमते प्रभातेजी ॥१॥
(७)
श्रीसिद्धचक्रकी स्तुति जिन शासन-वांछित-पुरण देव रसाल, भावे भवी भणीए, सिद्धचक्र गुणमाल । त्रिहुं काले एहनी, पूजा करे ऊजमाल, ते अजर-अमर-पद, सुख पामे सुविशाल ॥१॥ अरिहन्त, सिद्ध धन्दो, आचारज उवज्झाय, मुनि दरिसण नाण, चरण तप ए समुदाय । ए नवपद समुदित, सिद्धचक्र सुखदाय, ए ध्याने भविनां, भवकोटि दुःख जाय ॥२॥ आसो चैतरमां, शुदि सातमथी सार, पूनम लगी कीजे, नव आंबिल निरधार । दोय सहस गणj, पद सम साडा चार, एकाशी आयम्बिल, तप आगम अनुसार ।। ३ ।। श्रीसिद्धचक्रनो सेवक, श्रीविमलेश्वर देव । श्रीपालतणी परे, सुखपूरे स्वयमेव । दुःख दोहग्ग नावे, जे करे एहनी सेव, श्रीसुमति सुगुरुनो, राम कहे नित्यमेव ॥ ४ ॥
(८) श्रीसिद्धाचलकी स्तुति पुण्डरीकगिरि महिमा, आगममां प्रसिद्ध,
विमलाचल भेटी, लहीए अविचल रिद्ध । प्र-३८
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