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पञ्चम गति पहोंच्या, मुनिवर कोडा कोड, एणे तीरथ आवी, कर्म विघातक छोड ॥ १ ॥
( ९ )
श्रीशत्रुञ्जयकी स्तुति
श्रीशत्रुञ्जय तीरथ सार, गिरिवरमां जेम मेरु उदार, ठाकुर राम अपार;
मन्त्रमाही नवकार ज जाणु, तारामां जेम चन्द्र वखाणुं, जलधर जलमां जाणुं ।
पंखीमांहे जिम उत्तम हंस, कुलमांहे जिम ऋषभनो वंस, नाभि तणो ए अंस;
क्षमावन्तमां श्रीअरिहन्त, तपशूरा मुनिवर महन्त, शत्रुञ्जयगिरि गुणवन्त ॥ १ ॥
ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दा, सुमतिनाथ मुख पूनम चन्दा, पद्मप्रभु सुखकन्दा;
श्रीसुपार्श्व चन्द्रप्रभु सुविधि, शीतल श्रेयांस सेवो बहु बुद्धि, वासुपूज्य मति शुद्धि |
विमल अनन्त धर्म जिन शान्ति, कुंथु अर मल्लि नमुं एकांति, मुनिसुव्रत शिव पांति;
नमि नेमि पास वीर जगदीश, नेम विना ए जिन वीश, सिद्धगिरि आव्या ईश ।। २ ।।
भरतराय जिन साथे बोले, कहो स्वामी ! कुण शत्रुंजय तोले ? जिननुं वचन अमोले;
ऋषभ कहे सुणो भरतजी राय, 'छ' - री' पालतां जे नर जाय, पातक भूको थाय ।
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