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५८४ जस पञ्च कल्याणक, दिवस विशेष सुहावे, पण थावर नारक, तेहने पण सुख थावे । ते च्यवन-जन्म-व्रत, नाण अने निरवाण, सवि जिनवर केरां, ए पांचे अहिठाण ॥ २॥ जिहां पञ्च-समिति-युत, पञ्च-महाव्रत सार, जेहमां परकाश्या, वली पञ्च व्यवहार । परमेष्ठी-अरिहन्त, नाथ . सर्वज्ञने पार, एह पञ्च पदे लह्यो, आगम अर्थ उदार ।। ३ ॥ मातङ्ग सिद्धाई, देवो जिन-पद सेवी, दुःख-दुरित उपद्रव, जे टाले नित मेवी। शासन-सुखदायी, आई! सुणो अरदास, श्रीज्ञानविमल-गुण, पूरो वांछित आस ॥ ४ ॥
(५) श्रीसीमन्धर जिनकी स्तुति श्रीसीमन्धर जिनवर, सुखकर साहिब देव, अरिहन्त सकलनी, भाव धरी करुं सेव । सकलागम-पारग- गणधर-भाषित - वाणी, जयवन्ती आणा, ज्ञानविमल गुण खाणी ॥ १ ॥
(६) श्रीसीमन्धर स्वामीकी स्तुति महाविदेह क्षेत्रमा सीमन्धर स्वामी, सोनानु सिंहासनजी, रूपानां त्यां छत्र बिराजे, रत्न मणिना दीवा दोपेजी। कुमकुम वरणी त्यां गहुंली बिराजे, मोतीना अक्षत सारजी, त्यां बेठा सीमन्धर स्वामी, बोले मधुरी वाणीजी॥
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