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________________ [ गाहा ] सत्ताणवइ-सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अट्ठकोडीओ। बत्ती स-सय-बासी याई, तिअलोए चेइए वंदे ॥४॥ पन्नरस-कोडि-सयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवन्ना । छत्तीस सहस असीई, सासय-बिंबाइं पणमामि ॥५॥ शब्दार्थजर्गाचतामणि !-जगत्में चिन्ता- जिणवर! हे जिनवरों ! ऋषभादि मणि--रत्न समान ! तीर्थङ्करों ! जगन नाह!-जगत्के स्वामी ! | जयंतु-आपकी जय हो। जग-गुरू !-समस्त जगत्के गुरु ! | अप्पडिहय-सासण!-अखजग-रक्खण !-जगत्का रक्षण ण्डित शासनवाले !, अबाधित करनेवाले ! उपदेश देनेवाले ! जग-बंधव !-जगत्के बन्धु ! कम्मभूमिहिं-कर्मभूमियोंमें । जग-सत्थवाह!-जगत्को इष्ट पढमसंघयणि-प्रथम संहननस्थलपर (मोक्षमें) पहुँचानेवाले ! वाले, वज्र-ऋषभ-नाराचजगत्के उत्तम सार्थवाह ! संघननवाले। जग-भाव-विअक्खण !-जग संघयण-हड्डियोंकी विशिष्ट तके सर्वभावोंको जानने में तथा रचना। प्रकाशित करनेमें निपुण । उक्कोसय-अधिक-से-अधिक । अट्ठावय-संठविय-रूव ! सत्तरिसय-एकसौ सत्तर। अष्टापद पर्वतपर जिनकी प्रति- । माएँ स्थापित की हुई हैं ऐसे ! जिणवराण-जिनेश्वरोंकी, जिनोंकम्मट्ट-विणासण !-आठों की ( संख्या )। ... कर्मोका नाश करनेवाले ! विहरत-विचरण करते हुए। चउवीस वि-चौबीसों। लगभइ-प्राप्त होती है। .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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