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(२) बिना विचारे न बोले ।
(३) शास्त्र के विरुद्ध न बोले ।
(४) सूत्रसिद्धान्तके पाठ छोटे करके न बोले । (५) किसीके साथ कलहकारी वचन न बोले ।
(६) विकथा न करे । स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा एवं राजकथा ये चारों विकथा कहलाती हैं ।
(७) किसीकी हँसी करनेवाला वचन न कहे ।
(८) सामायिकका सूत्रपाठ अशुद्ध न बोले । ( ९ ) अपेक्षारहित न बोले ।
(१०) गुनगुनाते हुए न बोले ।
प्रश्न – कायाके बारह दोषों को दूर करनेके लिये क्या करना चाहिये ?
उत्तर -- (१) पाँवपर पाँव चढ़ाकर न बैठे ।
(२) डगमगाते आसनपर न बैठे अथवा जहाँसे उठना पड़े ऐसे आसनपर न बैठे ।
(३) चारों तरफ दृष्टि फिराकर देखता न रहे ।
(४) घरके कार्य अथवा व्यापार-व्यवहारसे सम्बन्धित बातका संज्ञासे इशारा न करे ।
(५) दीवार अथवा खम्भे का सहारा न ले । (६) हाथ-पैरों को समेटता - फैलाता न रहे । (७) आलस्य से शरीरको न मरोड़े । (८) हाथ-पैरकी अँगुलियोंको न चटकाए । (९) शरीर के ऊपर से मैल न उतारे । (१०) आलसी की तरह बैठा न रहे । (११) ऊँघे नहीं । (१२) वस्त्रोंको न सिकोड़े ।
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