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५५४ पाँचसें धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल ।
चोराशी लख पूर्व-, जस आयु विशाल ।। २ ॥ वृषभ-लंछन जिन वृष-धरु (ए), उत्तम गुण मणिखाण । तस पद-पद्म सेवन थकी, लहीए अविचल ठाण ॥३॥
(८) श्रीसीमन्धरस्वामीका चैत्यवन्दन श्रीसीमन्धर ! जगधणी, आ भरते आवो। करुणावन्त करुणा करी, अमने वन्दावो ॥ १॥ सयल भक्त तुमे धणी, जो होवे मुज नाथ । भवोभव हुं छु ताहरो, नहि मेलुं हवे साथ ॥ २॥ सयल सङ्ग छंडी करी, चारित्र लेइशुं । पाय तुमारा सेवीने, शिवरमणी वरीशुं ॥ ३ ॥ ए अलजो मुजने घणो, पूरो सीमन्धर देव । इहां थकी हुँ विनवू, अवधारो मुज सेव ॥ ४ ॥
.. श्रीसीमन्धरस्वामीका चैत्यवन्दन श्रीसीमन्धर वीतराग, त्रिभुवन तुमे उपकारी। श्रीश्रेयांस पिताकुले, बहु शोभा तुमारी ॥ १ ॥ धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी। वृषभ लंछन बिराजमान, वन्दे नर नारी ॥२॥ धनुष पाँचशे देहडीए, सोहे सोवन वान । कीर्तिविजय उवज्झायनो, विनय धरे तुम ध्यान ॥३॥
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