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(१०) श्रीसीमन्धरस्वामीका चैत्यवन्दन सीमन्धर परमातमा, शिव-सुखना दाता। पुक्खलवइ-विजये जयो, सर्व जीवना त्राता ।। १॥ पूर्व विदेहे पुण्डरीगिणी. नयरीए सोहे। श्रीश्रेयांस राजा तिहां, भवियणनां मन मोहे ॥२॥ चौद सुपन निर्मल लही, सत्यकी राणी मात । कुन्थु-अरजिन-अन्तरे, श्रीसीमन्धर जात ।।३॥ अनुक्रमे प्रभु जनमीआ, वळी यौवन पावे । मात-पिता हरखे करी, रुक्मिणी परणावे ॥४॥ भोगवी सुख संसारना, संजम मन लावे। मुनि-सुव्रत-नमि-अन्तरे, दीक्षा प्रभु पावे ॥५॥ घातीकर्मनो क्षय करी, पाम्या केवलज्ञान । वृषभ-लंछने शोभतां, सर्व भावना जाण ॥ ६ ॥ चोराशी जश गणधरा, मुनिवर एक सो कोड़। त्रण भुवनमां जोवतां, नहि कोई एनी जोड़ ॥ ७॥ दश लाख कह्यां केवली, प्रभुजीनो परिवार। एक समय त्रण कालना, जाणे सर्व विचार ॥ ८॥ उदय पेढाल-जिन-अन्तरे, थाशे जिनवर सिद्ध । जसविजय गुरु प्रणमतां, शुभ वांछित फल लीध ।। ९॥
(११)
नवपदजीका चैत्यवन्दन सकल-मङ्गल-परम-कमला-केलि-मंजुल-मन्दिरं । भव-कोटि-संचित-पाप-नाशन, नमो नवपद जयकरं ॥१॥
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