________________
५४८
२ चन्दन-पूजा शीतल गुण जेहमां रह्यो, शीतल प्रभु-मुखरङ्ग । आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा-अङ्ग ॥ २ ॥
३ पुष्प-पूजा सुरभि अखण्ड कुसुमे ग्रही, पूजो गत सन्ताप । सुन(न)जन्तु भव्य ज परे, करीए समकित छाप ।। ३ ।।
४ धूप-पूजा ध्यान-घटा प्रगटावीए, वामनयन जिन धूप । मिच्छत्त दुर्गन्ध दूरे टले, प्रगटे आत्मस्वरूप ॥ ४ ॥
५ दीपक-पूजा द्रव्य दीप सुविवेकथी, करतां दुःख होय फोक । भाव-प्रदीप प्रगट हुए, वासित लोकालोक ।। ५ ।।
६ अक्षत-पूजा शुद्ध अखण्ड अक्षत ग्रही, नन्दावर्त विशाल । पूरी प्रभु संमुख रहो, टाली सकल जंजाल ॥ ६॥
७ नैवेद्य-पूजा अणाहारी पद में कर्या, विग्रह गई अनन्त । दूर करी ते दीजिए, अणाहारी शिव सन्त ॥ ७ ॥
८ फल-पूजा इन्द्रादिक पूजा भणी, फल लावे धरी राग । पुरुषोत्तम पूजा करी, मागे शिवफल-त्याग ॥ ८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org