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________________ ५४९ [२२] प्रभु-स्तुति (१) छे प्रतिमा मनोहारिणी दुःखहरी, श्रीवीर जिणन्दनो, भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खोली चान्दनी। आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छ, पामी सघळां सुख ते जगतनां, मुक्ति भणी जाय छे ॥१॥ (२) आव्यो शरणे तुमारा जिनवर ! करजो, आश पूरी हमारी, नाव्यो भवपार भारो तुम विण जगमां, सार ले कोण मारी ? गायो जिनराज आजे हरख अधिकथी, पर्म आनन्दकारी, पाये तुम दर्श नासे भव-भय-भ्रमणा, नाथ सर्वे अमारी ॥१॥ (३) त्हाराथी न समर्थ अन्य दीननो, उद्धारनारो प्रभु, म्हाराथी नहि अन्य पात्र जगमां, जोतां जडे हे विभु । मुक्ति मङ्गल-स्थान तो य मुजने, इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यगरत्न 'श्याम' जीवने, तो तृप्ति थाये घणी ॥१॥ १. प्रभु-स्तुति, चैत्यवन्दन, स्तवन आदिमें भाषाकी दृष्टि से यथाशक्य सुधार किया है, किन्तु छन्दको दृष्टिसे जो अशुद्धियाँ हैं, उन्हें सुधारने से मूल कलेवर (पाठ ) बदल जाता है इसलिये उसमें परिवर्तन नहीं किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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