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[२२] प्रभु-स्तुति
(१)
छे प्रतिमा मनोहारिणी दुःखहरी, श्रीवीर जिणन्दनो, भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खोली चान्दनी। आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छ, पामी सघळां सुख ते जगतनां, मुक्ति भणी जाय छे ॥१॥
(२) आव्यो शरणे तुमारा जिनवर ! करजो, आश पूरी हमारी, नाव्यो भवपार भारो तुम विण जगमां, सार ले कोण मारी ? गायो जिनराज आजे हरख अधिकथी, पर्म आनन्दकारी, पाये तुम दर्श नासे भव-भय-भ्रमणा, नाथ सर्वे अमारी ॥१॥
(३) त्हाराथी न समर्थ अन्य दीननो, उद्धारनारो प्रभु, म्हाराथी नहि अन्य पात्र जगमां, जोतां जडे हे विभु । मुक्ति मङ्गल-स्थान तो य मुजने, इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यगरत्न 'श्याम' जीवने, तो तृप्ति थाये घणी ॥१॥
१. प्रभु-स्तुति, चैत्यवन्दन, स्तवन आदिमें भाषाकी दृष्टि से यथाशक्य सुधार किया है, किन्तु छन्दको दृष्टिसे जो अशुद्धियाँ हैं, उन्हें सुधारने से मूल कलेवर (पाठ ) बदल जाता है इसलिये उसमें परिवर्तन नहीं किया।
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