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५४६ पाँच कोडीने फूलडे, पाम्या देश अढार। राजा कुमारपालनो, वो जयजयकार ॥ ४ ॥ प्रभु नामनी औषधि, खरा भावथी खाय । रोग शोक व्यापे नहीं, सबि सङ्कट दूर थाय ।। ५ ।।
[१९] शत्रुञ्जयको प्रणिपात करते समय बोलनेके दोहे
सिद्धाचल समरु सदा, सोरठ देश मझार । मनुष्य-जन्म पामो करी, बन्दूँ वार हजार ।। १ ।। एकेकु डगलुं भरे, शत्रुञ्जय समुं जेह। ऋषभ कहे भव क्रोडनां, कर्म खपावे तेह ॥२॥ सिद्धाचल सिद्धि वर्या, गृहि-मुनिलिङ्ग अनन्त । आगे अनन्ता सिद्धशे, पूछो भवि ! भगवन्त ।। ३॥ शत्रुञ्जय गिरि-मण्डणो, मरुदेवानो नन्द । युगलाधर्म निवारको, नमो युगादि जिणन्द ।। ४ ।। सोरठ देशमां संचर्यो, न चढयो गढ़ गिरनार । शेजी नदी नाशो नहीं, एले गयो अवतार ॥ ५ ॥
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नवाङ्गपूजाके दोहे जल भरी सम्पुट पत्रमां, युगलिक-नर पूजन्त। ऋषभ-चरण-अंगूठडो, दायक भवजल-अन्त ॥१॥ जानु बले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश-विदेश । खड़ा खड़ा केवल लह्य पूजो जानु नरेश ।। २॥
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