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५१४ (२४) पिछली रातमें जागकर नमस्कारका स्मरणकर भावना करके, मातरेकी बाधा दूर करे। फिर इरियावही पडिक्कमण कर 'कुसुमिण दुसुमिण' का काउस्सग्ग करके चैत्य० स्वाध्याय करके प्रतिक्रमणके अवसरपर रात्रिक प्रतिक्रमण करे ।
(२५ फिर स्थापनाचार्यजीका पडि० होनेके पश्चात् पूर्वोक्त विधिसे पडिलेहण करे और इरिया० पूर्वक काजाको लेकर पूर्वोक्त विधिसे देव-वन्दन तथा सज्झाय करे। ___ (२६) फिर इरियावही पडिक्कमण कर 'इच्छा० मुहपत्ती पडिलेहूं ?' वहाँसे पोसह पारनेकी विधिमें बताये अनुसार 'सामाइयवय-जुत्तो' कहने तककी सारी विधि करके पोसह पारे और अविधि हुई हो उसका ‘मिच्छा मि दुक्कडं' दे।
गमणागमणे ईर्या-समिति, भाषा-समिति, एषणा-समिति, आदानभंड-मत्तनिक्खेवणा-समिति, पारिष्ठापनिका-समिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति, ये पाँच समिति, तीन गुप्ति; आठ प्रवचन-माता श्रावकके धर्ममें सामायिक पोसह लेकर उसका अच्छी तरह पालन नहीं किया और खण्डन-विराधना हुई हों, ते सविहूं मन, वचन कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं । इति ।
[११] सामायिक लेनेकी विधिके हेतु योग और अध्यात्मका विषय अतिसूक्ष्म होनेसे तथा प्रायः वह
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