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________________ ५१३ बोले। गुरु कहे 'तह त्ति' तब खमा० प्रणि• करके इरियावहीपडिक्कमण करे। फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० बहुपडिपुन्ना पोरिसी राइय-संथारे ठाऊ मि) ?' ऐसा कहे। गुरु कहे 'ठाओ' तब 'पणिहाण-सुत्त' तकके पाठ बोल कर चैत्यवन्दन करे। उसमें चैत्य-वन्दनके अधिकार में 'पासनाह-जिण थुई' ('चउक्कसाय-सूत्र') बोले। फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० संथारा-विधि भणवा मुहपत्ती पडिलेहं ?' ऐसा कह कर आदेश माँगे और गुरु कहें 'पडिलेहेह' तब 'इच्छं' कहकर मुहपत्तीका पडिलेहण करे और 'निसीहि निसीहि निसोहि, नमो खमासमणाणं गोयमाईणं महामुणीणं' इतना पाठ 'नमस्कार' तथा 'सामाइय-सुत्त' तीन बार कहे। फिर 'संथारापोरिसी' पढ़ावें। उसमें 'अरिहंतो मह देवो' यह गाथा तीन बार बोले । बादमें सात नमस्कार गिनकर शेष गाथाएं बोले । (२२) इस प्रकार 'संथारा-पोरिसी' कह लेने के बाद स्वाध्यायध्यान करे और जब निद्रा-पोड़ित होवे तब लघुशङ्काकी बाधा दूरकर इरिया० 'गमणागमणे' करके दिनमें पडिलेही हुई भूमि पर संथारा करे। वह इस प्रकार:-'प्रथम भूमि पडिलेहकर संथारिया बिछाये । उसके ऊपर उत्तरपट ( चादर ) बिछाये, मुहपत्ती कमरमें लगा दे, कटासना, चरवला दाँयी ओर रखे और मातरिया पहनकर बाँयी करवटसे तकिया रख कर सोये।' (२२) रात्रिमें चलना पड़े तो दंडासणसे पडिलेहते हुए चलेबीचमें जागे तो बाधा टालकर इरिया० करके कम से कम तीन गाथाका स्वाध्याय करके सोये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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