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________________ ५१२ (१) आघाडे' आसन्ने उच्चारे पासवणे अणहियासे। (२) आघाडे आसन्ने पासवणे अणहियासे । (३) आघाडे मज्झे उच्चारे पासवणे अणहियासे । (४) आघाडे मज्झे पासवणे अणहियासे । (५) आघाडे दूरे उच्चारे पासवणे अणहियासे । (६) आघाडे दूरे पासवणे अणहियासे । दूसरे छ: मांडले उपाश्रयके अन्दर ऊपरके अनुसार ही कहने, किन्तु वहाँ 'अणहियासे' के स्थानपर 'अहियासे" कहना। तीसरे छ: मांडले उपाश्रयके द्वारके बाहर अथवा समीपमें रहकर करने तथा चौथे छ: मांडले उपाश्रयसे करीन-सौ हाथ दूर रहकर करने । उन बारह मांडलोंमें आघाडेके स्थानपर अणाघाडे शब्द बोलना। शेष शब्द ऊपर लिखे अनुसार कहने ! ये मांडलेवाली जगह पहलेसे ही देख लेनी और मांडला स्थापनाजीके पास रहकर बोलते समय उस-उस स्थानपर दृष्टिका उपयोग करना । इस प्रकार चौबीस मांडला करने के बाद इरियावही पडिक्कमण करके चैत्यवन्दन-पूर्वक प्रतिक्रमण करना। (२१) रात्रि-पोषधवाला प्रहर रात्रि-पर्यन्त स्वाध्याय करे । फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० बहुपडिपुन्ना-पोरिसी ?' ऐसा १ खास कठिनाईके समय । २ पासमें । ३ बड़ी नीतिके प्रसंगमें । ४ लघुनीतिके प्रसंगमें । ५ असह्य होनेपर । ६ मध्यमें । ७ दूर । ८ सह्य होनेपर । ९ खास कठिनाई न हो उस समय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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