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________________ ५११ बोलकर 'पोसह पारनेका सूत्र' ('सागरचंदो कामों') बोलना। फिर सामायिक पारनेकी विधिके अनुसार सामायिक पारना। __ (१९) रात्रि-पोषध करनेकी इच्छावालेका कमसे-कम एकाशन किया हुआ होना ही चाहिये; उसको चूनेका पानी, कुण्डल, रुई, दण्डासण याच लेने चाहिये और कामली तथा संथारिया साथ रखना चाहिये। पहले पडिलेहण, देव-वन्दन किया हुआ हो तो बादमें पोषध लेनेकी विधिके अनुसार, पोषध तथा सामायिक लेकर सब आदेश माँगे ।' और उस समय केवल मुहपत्तीका ही पडिलेहण करना । परन्तु पोषध उच्चारणके बाद पडिलेहण तथा देव-वन्दन किया जाय वह अधिक योग्य है। (२०) जिसने प्रातः आठ प्रहरका ही पोषध लिया हो वह सायङ्कालीन देव-वन्दनके पश्चात् कुण्डल जाँच ले, अर्थात् रुईके दो फोहे दोनों कानोंमें रखे। यदि उनको खो दे तो आलोयणा लगती है। फिर दण्डासण तथा रात्रिके लिये चूना डाला हुआ अचित्त पानी याचकर रख ले तथा सौ हाथ वसति देख आये जिसमें रात्रिको मातरा आदि परठव सके। बादमें खमा० प्रणि० करके इरियावही कहकर 'इच्छा० स्थंडिल पडिलेहुं ?' ऐसा कहकर आदेश माँगे । गुरु कहें 'पडिलेहेह' तब 'इच्छं' कहकर चौबीस मांडला करे । इन मांडलोंको मनमें धारणा की जाती है वह इस प्रकार:___प्रथम संथारेकी जगहके पास छ: मांडले करना. १. नवीन पोषध लेनेवालेको 'बहुपडिपुन्ना पोरिसी' का आदेश नहीं माँगना परन्तु पोषधशालाके प्रमार्जनका आदेश माँगना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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