________________
५०७
याचकर उसका पडिलेहण करके उसमें याचा हुआ अचित्त जल कटासणपर बैठकर पीना और पानी पीनेका पात्र पोंछकर रखना । पानावाला पात्र खुला नहीं रखना ।
(१३) यदि आयंबिल, निव्वी अथवा एकाशन करनेके लिये अपने घर जाना हो तो इर्यासमिति शोधते हुए जाना और घरमें प्रवेश करते हुए जयणा - मंगल' बोलकर आसन ( कटासण ) डालकर, बैठकर, स्थापनाचार्य स्थापित कर, इरियावही पडिक्कमण करना | फिर खमा० प्रणि० करके 'गमणागमणे' आलोचना | फिर काजा लेकर परठनकर इरियावही करके, पटिया तथा थाली आदि बरतन याचकर उसका प्रमार्जन कर, फिर आहार याचकर संभव हो तो अतिथि - संविभाग करके, निश्चल आसनपर बैठकर मौनपूर्वक आहार करना । यथा सम्भव आहार प्रणोत ( रस - कसवाला ) नहीं होना चाहिये, और 'चब-चब' आवाज हो ऐसा नहीं होना चाहिये । ली हुई वस्तुमेंसे कोई भी वस्तु जँठी नहीं छोड़नी और परोसनेवाला 'वापरो' ऐसा कहे, फिर वापरना । जिसको घर नहीं जाना हो, वह पोषधशाला में पूर्व प्रेरित पुत्रादिद्वारा लाया हुआ आहार कर सकता है, किन्तु साधुकी तरह बहोरनेके लिये नहीं जा सकता । इसके लिये प्रथम स्थानका प्रमार्जन करना और उसपर कटासन बिछाना । फिर पात्र आदिका प्रमार्जन कर, स्थापना स्थापितकर इरियावही पडिक्कमण करके निश्चल आसनपर बैठकर मौनपूर्वक आहार करना ।
विशिष्ठ प्रकार के कारण बिना मोदकादि स्वादिष्ट वस्तु तथा लवङ्ग ताम्बूल आदि मुखवास वापरना नहीं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org