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________________ ५०५ खाण करना चाहिये। खास कारण हो तो गुरु की आज्ञासे साड्ढपोरिसी-आयंबिल-एकाशनका पच्चक्खाण भी कर सकते हैं। (८) फिर सर्व मुनिराजोंको दो बार खमा० प्रणिपात करके, इच्छकार तथा 'गुरुखामणा-सुत्त' का पाठ बोलकर वन्दन करना। (९) फिर लघुशङ्का करनी हो ( मातरा करनी हो ) तो कुण्डी, पूंजणो और अचित्त जलकी याचना करनी । तथा मातरीया पहनकर पूंजणी द्वारा कुण्डी पूंजकर, उसमें लघुशङ्का करके परठवनेके स्थानपर जाना । वहाँ कुण्डी नीचे रखकर निर्जीव भूमि देखकर 'अणुजाणह जस्सुग्गहो' कहकर मूत्र परठवना। परठवनके बाद फिरसे कुण्डी नीचे रखकर तीन बार 'वोसिरे' कहकर कुण्डी मूल स्थानपर रखकर, अचित्त जलसे हाथ धोकर वस्त्र बदलकर स्थापनाचार्यके सम्मुख आना और खमा० प्रणि० करके इरियावही पडिक्कमण करना । यहाँ इतना याद रखना कि जब जब पोषधशाला अथवा उपाश्रयके बाहर जानेका प्रसङ्ग आये तब तीन बार 'आवस्सही' कहना और अन्दर प्रवेश करते समय तीन बार 'निसीहि' कहना। (१०) पोसह लेनेके पश्चात् जिनमंदिरमें दर्शन करने जाना चाहिये । उसको विधि इस प्रकार है-कटासण बाँये कन्धेपर डालकर उत्तरासन करके चरवला बाँयो कोखमें और मुहपत्ती दाँये हाथमें रखकर ईर्यासमिति शोधते हुए मुख्य जिनमन्दिरमें जाना। वहाँ तीन बार 'निसोहि' कहकर मन्दिरके प्रथमद्वारमें प्रवेश करना और मूलनायकजीके सम्मुख जाकर दूरसे प्रणाम करके तीन प्रदक्षिणा प्र-३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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