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________________ ५०४ (६) छः घड़ी दिन चढ़नेके बाद पोरिसी पढ़ानी। वह इस प्रकार-खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० बहु-पडिपुन्ना पोरिसी ? ऐसा कहना। गुरु कहें 'तह त्ति' तब 'इच्छं' कहना। फिर खमा० प्रणि० करके इरियावही पडिक्कमण कर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० पडिलेहण करूँ ?' ऐसा कहना। गुरु कहें 'करेह' तब इच्छं' कहना और मुहपत्ती पडिलेहनी। (७) गुरु हों तो उनके समक्ष राइय-मुहपत्ती पडिलेहनी । वह इस प्रकारः-प्रथम खमा० प्रणि० करके इरियावही पडिक्कमण कर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० राइय-मुहपत्तो पडिलेहुं ?' ऐसा कहना । गुरु कहें-'पडिलेहेह' तब 'इच्छं' कह कर मुहपत्ती पडिलेहनी। फिर द्वादशावर्त-वन्दन करना। बादमें 'इच्छा. राइअं आलोउं ? इस प्रकार कहना। गुरु कहें-'आलोएह' तब 'इच्छं' कहकर 'आलोएमि, जो मे राइओ अइआरो' तथा सव्वस्स वि राइअ०' कहकर पदस्थ हों तो उनको द्वादशावत-वन्दन करना और पदस्थ न हों तो एक ही खमाल प्रणि० करना। फिर 'इच्छकार सुहराइ०' कहकर खमा० प्रणि० करके 'गुरु-खामणा-सुत्त' ( 'अब्भुट्टिओ हं' सूत्र ) द्वारा गुरुको खमाना। फिर द्वादशातवन्दन करके 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पच्चक्खाणका आदेश देनाजी' ऐसा कहकर पच्चक्खाण लेना। यहाँ चोविहार या तिविहार उपवास अथवा पुरिमड्ढ आयंबिल या एकाशनका पच्च १. जिन्होंने गुरुके साथ रात्रिक-प्रतिक्रमण न किया हो उनके लिये यह विधि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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