________________
५०३ (४) देव-वन्दनकी विधि इस प्रकार जाननी
(१) प्रथम खमा० प्रणि० करके इरियावहो पडिक्कमण कर, 'लोगस्स' कहकर उत्तरासन डालकर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० चेइयवंदणं करेमि' ऐसे कहना । बादमें 'इच्छं' कहकर चैत्य-वन्दन, 'तित्थ-वंदण-सुत्त' ( जं किंचि' सूत्रः) 'सक्कत्थय-सुत्त' ( 'नमो त्थु णं' सूत्र ) और 'पणिहाण-मुत्त' ( 'जय-वीयराय' सूत्र ) 'आभवमखंडा' तक कहकर खमा० प्रणि० करके चैत्यवन्दन करके, 'सक्कत्थय सुत्त' कहकर चार थोय ( स्तुतियाँ ) बोलने तककी सब विधि करनी । (२) फिर 'सक्कत्थय-सुत्त' आदि बोलकर दूसरी बार चार स्तुतियाँ बोलनी। (३) फिर 'सक्कथय-सुत्त' तथा 'सव्वचेइय-वंदण-सुत्त' ( 'जावंति चेइआई' ) और 'सव्व-साहू-वंदणसुत्त' ('जावंत के वि साहू') का पाठ बोलकर स्तवन बोलकर 'पणिहास-सुत्त' का पाठ 'आभवमखंडा' तक बोलना । (४) फिर खमा० प्रणि० करके 'चैत्य-वन्दन,' 'तित्थ-वंदण-सुत्त' ( 'जं किंचि' सूत्र) 'सक्कथय-सुत्त' बोलकर 'पणिहाण-सुत्त' पूरा बोलना । इसके पश्चात् विधि करते हुए अविधि हुई हो उसका आत्माको 'मिच्छा मि दुक्कडं' द्वारा दण्ड देकर प्राभातिक देव-वन्दनके अन्तमें सज्झाय कहनी। ( मध्याह्न तथा सायङ्कालको नहीं कहनी।)
(५) सज्झायकी विधि इस प्रकार जाननी-प्रथम खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० सज्झाय करू ?' ऐसा कहना । गुरु कहें'करेह' तब 'इच्छं' कहकर नमस्कार गिनकर पैरोंपर बैठकर एक व्यक्ति 'सड्ढ-निच्चकिच्च-सज्झाओ'। ('मन्नह जिणाणं' की सज्झाय सूत्र-४५ ) बोले।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org