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त्ति' कहकर दहिना हाथ कटासणा अथवा चरवले पर रखकर, एक नमस्कार गिनकर जो पच्चक्खाण किया हो, उसका नाम बोलकर पारना । वह इस प्रकार
"उग्गए सूरे नमुकार-सहिअं, पोरिसिं, साढपोरिसिं, गंठिसहिअं, मुट्ठि-सहिअं पच्चक्खाण कयु, चडविहार, आयंबिल, निवि, एगासण, बियासण, पञ्चक्खाण कयु, तिविहार पच्चक्खाण फासिअं, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं, किट्टि आराहिअं, जं च न आराहि तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।" अन्त में एक नमस्कार गिनना।
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पोषध-विधि (१) पोषधके प्रकार:-पोषधके मुख्य चार प्रकार हैं-(१) आहार-पोषध, (२) शरीर-सत्कार-पोषध, (३) ब्रह्मचर्य-पोषध और (४) अव्यापार-पोषध । इन चारों प्रकारोंके देश और सर्वसे दो दो भेद हैं, परन्तु वर्तमान सामाचारीमें आहार-पोषध देश और सर्वसे किया जाता है । शेष अन्य तीनों पोषध सर्वसे किये जाते हैं। तिविहार उपवास, आयंबिल, निव्वी तथा एकाशन करना वह देश-आहारपोषध है और चोविहार उपवास करना वह सर्व आहार-पोषध है। - (२) पोषधमें प्रतिक्रमणादिः-पोषध करनेकी इच्छावाले को
१. पोषध के अर्थ आदिके लिये देखो प्रबोध-टीका, भाग २ रा, सूत्र ३२ की गाथा २९ ।
कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य तथा अभयदेवसूरि आदिने 'पोषध' शब्दको शुद्ध मानकर उसका व्यवहार किया है ।
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