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प्रभात में जल्दी उठकर रात्रिक-प्रतिक्रमण करना । फिर उपाश्रयमें आकर गुरुके समक्ष पोषध उच्चरना । वर्तमान सामाचारी इस प्रकार है, परन्तु मुख्य रूप से प्रातः पोषध लेकर फिर प्रतिक्रमण करना चाहिये । इस प्रतिक्रमण में 'जीवहिंसा-आलोयणा' सुत्त ('सात लाख ' ) और 'अट्ठारस पाव ठाणाणि' सूत्र के बदले में 'गमणागमणे' सूत्र कहना ( जो आगे दिया हुआ है ) । और 'साहु - वंदण - सुत्त' ( अड्ढाइज्जेसु' सूत्र ) से पूर्व 'बहुवेल' का आदेश लेना । फिर चार खमा० प्रणि० द्वारा आचार्यादिको वन्दन करके 'साहू - वंदण' सुत्त ( अड्ढाइज्जेसु' सूत्र ) कहना और प्रतिक्रमण पूर्ण करना। फिर खमा० प्रणि० पूर्वक इरियावहियं करके खमा० प्रणि० पूर्वक आदेश माँगना । 'इच्छा० पडिलेहण करूँ ?' फिर 'इच्छं' कहकर पाँच वस्तु पडिलेहनी - मुहपत्तो, चरवला, कटासणा, कंदोरा और धोती । फिर इरिया० कहकर बाकी के वस्त्र पडिलेहने । उसके बाद देववन्दन करना |
(३) फिर उपाश्रय में आकर पोषधके लिए गुरु- सम्मुख नीचे लिखी अनुसार विधि करनी : - ( इसमें प्रतिक्रमणके साथ में पडिलेहण करनेवालको निम्न प्रकारसे विधि तो करना, किन्तु वस्त्र नहीं पडिलेहने; क्यों कि उनको पडिलेहणा प्रथम की हुई है | )
(१) खमा० प्रणि० करके, 'इरियावही' पडिक्कमी, तस्स उत्तरी, सूत्र तथा 'अन्नत्थ' सूत्र बोलकर, काउस्सग्ग करना । उसमें 'चउवीसत्थय' सुत्त ( 'लोगस्स' सूत्र ) का स्मरण करके काउस्सग्ग पूर्ण प्रतिक्रमण में इस
१ रात्रिक - पोषधमें भी दूसरे दिन प्रातः कालके प्रकार विधि करना ।
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