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करना चाहिये तथा माङ्गलिकके लिये श्रोसकलचन्द्रजी उपाध्यायरचित 'सत्तरभेदी पूजा' पढ़नी चाहिये । अतिचारके पश्चात् छींक आवे तो केवल छींकका काउस्सग्ग करना और ऊपर कहे अनुसार 'सत्तरभेदी पूजा' पढ़नी, ऐसा सम्प्रदाय है ।
छींक के काउसकी विधि
इरियाही पक्किमण करके लोगस्स० 'इच्छा० क्षुद्रापद्रव - ओहडावणत्थं काउस्सग्गं करूँ ? गुरु कहें- 'करेह' तब 'इच्छं' कहकर क्षुद्रोपद्रव० 'अन्नत्थ' सूत्र कहकर, चार लोगस्सका 'सगरवर - गंभीरा' तकका अथवा सोलह नमस्कारका काउस्सग्ग करना और नीचे लिखी हुई थोय ( स्तुति ) कहनी |
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" सर्वे यक्षम्बिकाद्या ये वैयावृत्यकरा जिने । क्षुद्रोपद्रव - सङ्घातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः || ३ || "
फिर 'लोगस्स' सूत्र कहकर प्रतिक्रमणको आगेकी विधि करनी । [ ९ ] पच्चक्खाण पारनेकी विधि
१. प्रथम इरियावही पडिक्कमण करके 'जगचितामणि' का चैत्य वन्दन कर 'जय - वीयराय' सूत्र तकके सब पाठ कहने, फिर 'मन्नह जिणार्ण' की सज्झाय कहकर मुहपत्ती पडिलेहनी ।
२. फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० पच्चक्खाण पारूँ ?' 'यथाशक्ति' कहकर फिर खमा० 'इच्छा० पच्चाक्खाण पायें' 'तह
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