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________________ ४९७ [६] चातुर्मासिक-प्रतिक्रमणकी विधि चातुर्मासिक-प्रतिक्रमणको विधि पाक्षिक-प्रतिक्रमणके जैसी ही है परन्तु उसमें विशेषता इतनी है कि बारह लोगस्सके काउस्सग्गके स्थानपर बीस लोगस्सका अथवा अस्सी नमस्कारका काउस्सग्ग करना। 'पक्खी' के स्थानपर 'चउमासी' शब्द बोलना और तपकी जगह 'छट्टेणं दो उपवास, चार आयंबिल, छ: निव्वी, आठ एकाशन, सोलह बियाशन, चार हजार सज्झाय', ऐसा कहना। [७] सांवत्सरिक प्रतिक्रमणकी विधि सांवत्सरिक प्रतिक्रमणको विधि भी हरतरहसे पाक्षिक प्रतिक्रमणकी विधिके अनुसार ही है, परन्तु इसमें विशेषता इतनी है कि बारह लोगस्सके काउस्सग्गके। स्थानपर चालिस लोगस्स और एक नमस्कारका अथवा एकसौ साठ नमस्कारका काउस्सग्ग करना, 'पक्खो' के स्थानपर 'संवत्सरी' शब्द बोलना और तपके स्थानपर ''अट्ठमभत्तं' तीन उपवास, छ: आयंबिल, नौ निव्वी, बारह एकाशन, चौबीस बियाशन और छः हजार सज्झाय' ऐसा कहना। [८] छींक आवे तो करनेकी विधि पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में जो अतिचारसे पूर्व छींक आवे तो चैत्यवन्दनसे फिर आरम्भ करना चाहिये और दुक्ख-खय कम्म-खयके काउस्सग्गसे पूर्व छींकका काउस्सग्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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