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४७४ ९. इसी प्रकार तीन बार हथेलीसे कोनी तक मुहपत्तोको ऊपर रखकर अन्दर लो और बोलो कि :
ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरू। - [इन तीनों वस्तुओंको अपने भीतर लेनेके लिए इनका व्यापक न्यास किया जाता है। ]
१०. अब ऊपरकी क्रियासे विपरीत तीन बार कोनीसे हाथकी अँगुली तक मुहपत्ती ले जाओ और बोलो किज्ञान-विराधना, दर्शन-विराधना, चारित्र-विराधना परिहरू।
[ये तीन वस्तुएं बाहर निकालने की हैं, तदर्थ उसका घिसकर प्रमार्जन किया जाता है।] ११. अब मुहपत्तीको तीन बार अन्दर लो और बोलो कि
___ मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरूं। [ इन तीनों वस्तुओंको अपने भीतर लेने के लिए इनका व्यापक न्यास किया जाता है।]
१२. अब तीन बार मुहपत्तीको कोनीसे हाथकी अँगुली तक ले जाओ और बोलो कि
मनो-दण्ड, वचन-दण्ड, काय-दण्ड परिहरू। [ये तीनों वस्तुएँ बाहर निकालनेको हैं इसलिए इनका प्रमाजन किया जाता है।]
शरीरका पडिलेहण करते समय विचारनेके २५ बोल ।
[ इन बोलोंके समय अभ्यन्तर प्रमार्जन करना आवश्यक होनेसे हर समय प्रमार्जनको क्रिया की जाती है।]
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