SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७५ १. अब अंगुलीमें भरी हुई मुहपत्ती प्रदक्षिणाकारसे अर्थात् दाँये हाथपर दोनों तरफ तथा नोचे इस तरह तीन बार प्रमार्जन करो और बोलो कि हास्य, रति, अरति परिहरू। २. इसी प्रकार बाँये हाथकी अंगुलियोंके मध्यमें मुहपत्ती रखकर दाँये हाथमें प्रदक्षिणाकारसे बीचमें और दोनों तरफ प्रमार्जन करो और मनमें बोलो कि __भय, शोक, जुगुप्सा परिहरू। ३. फिर अँगलीके मध्य भागसे मुहपत्तो निकालकर दुहरी ही लेकर, मुहपत्तीके दोनों भाग दोनों हाथोंसे पकड़कर मस्तकपर बीचमें और दाँये-बाँये दोनों भागोंपर तीन बार प्रमार्जना करते हुए अनुक्रमसे मनमें बोलो कि ___ कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत-लेश्या परिहरू। ___ ४. फिर बीचमें और दाँये-बाँये दोनों भागोंमें तीन बार मुखपर प्रमार्जना करो और मनमें बोलो कि ___ रसगारव, ऋद्धिगारव, सातागारव परिहरू ५. ऐसे ही बीचमें और दाँये-बाँये दोनों भागोंमें छातीपर तीन बार प्रमार्जना करो और क्रमशः मनमें बोलो कि मायाशल्य, निदानशल्य, मिथ्यात्वशल्य परिहरू । ६. अब मुहपत्ती दोनों हाथमें चौड़ी पकड़कर दाँये कन्धेपर प्रमार्जना करो और बोलो कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy