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________________ ४७२ सूत्र [ इस समय मुहपत्तोके एक भागको प्रतिलेखना होती है अर्थात् उसके एक ओरके भागका बराबर निरीक्षण किया जाता है। ] - २. फिर उसको बाँये हाथपर रखकर बाँये हाथमें पकड़ा हुआ कोना दाँये हाथमें पकड़ो और दाँये हाथमें पकड़ा हुआ कोना बाँये हाथमें पकड़कर फिर सामने लाकर मनमें बोलो कि : अर्थ, तत्त्व करी सद्दहु। [ सूत्र और अर्थ दोनोंको तत्त्वरूप अर्थात् सत्यस्वरूप समझू और उसकी प्रतीति करके उसपर श्रद्धा करूं । उस समय मुहपत्तीके दूसरे भागकी प्रतिलेखना होती है अर्थात् मुहपत्तीके दूसरे भागका बराबर निरीक्षण किया जाता है। ] ३. फिर मुहपत्तोका बाँये हाथकी ओरका भाग तीन बार हिलाओ, उस समय मनमें धीरेसे बोलो कि :सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, मिथ्यात्वमोहनीय परिहरू। [ दर्शनमोहनीय-कर्मकी तीन प्रकृतियाँ दूर करने योग्य हैं, अर्थात् मुहपत्ती यहाँ तीन बार हिलायी जाती है।] ४. फिर बाँये हाथपर मुहपत्ती रख, पलटकर, दाँये हाथकी ओरका भाग तीन बार हिलाओ। उस समय मनमें बोलो कि : कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग परिहरू। [ तीनों प्रकारके राग दूर करने योग्य हैं अर्थात् मुहपत्ती यहाँ तीन बार हिलायी जाती है।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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