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विशेषतः-खास कर ।
| विनायक-गणेश, गणपति । ज्ञानाचार, दर्शनाचार और | हनुमंत-हनुमान।
चारित्राचार इन तीन आ- | सुग्रीव-प्रसिद्ध राम-सेवक । चारोंका पालन प्रथम | वालोनाह-एक क्षेत्रपालका नाम सामान्य रीतिसे किया, | है । ( आबू तीर्थकी स्थापनामें कारण कि इन तीनों अति- मन्त्रीश्वर विमलके कार्य में चारोंकी बात साधु और जिसने विघ्न किया, और बादश्रावकोंके लिये प्रायः समान में वश हुआ।) ही लागू होती है। अब जूजूआ-पृथक् पृथक् । श्रावकके योग्य अतिचारका आतंक-सन्ताप, रोग, भय । वर्णन करनेका आरम्भ होने- सिद्ध-लोकमें 'सिद्ध' के रूपमें से विशेषतः ऐसा शब्द | प्रसिद्ध ।
प्रयोग किया है। जीराउला-मिथ्यात्वी देव (तीर्थ) संका-कंख-विगिच्छा । इस विशेष । गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र | भरडा-एक प्रकारके साधु । ३२ गाथा ६ ।
[ शिव भक्तोंकी एक जाति । क्षेत्रपाल-लौकिक देव जो कुछ
जिसकी मूढताके सम्बन्धमें क्षेत्रोंकी रक्षा करते हैं ।
'भरटक-द्वात्रिंशिका' आदि
में कथाएँ हैं ] गोगो-नागदेव । आसपाल-आशा-दिशाके पालने- J+
भगत-देवीको मानने वाले अथवा
लोकमें इस नामसे प्रसिद्ध वाले इन्द्रादिक दिक्पाल देव ।
व्यक्ति । पादर-देवता-गाँव-पादरके देव
पाठान्तरमे 'भगवंत' शब्द है।
लिंगिया-साधुका वेष धारण गोत्र-देवता-गोत्रके देव-देवी।। करनेवाले ! ग्रह-पूजा-ग्रहोंकी शान्तिके लिये | जोगिया-जोगीके नामसे प्रसिद्ध को जानेवाली पूजा।
साधु।
देवी।
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