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________________ ४४२ विशेषतः-खास कर । | विनायक-गणेश, गणपति । ज्ञानाचार, दर्शनाचार और | हनुमंत-हनुमान। चारित्राचार इन तीन आ- | सुग्रीव-प्रसिद्ध राम-सेवक । चारोंका पालन प्रथम | वालोनाह-एक क्षेत्रपालका नाम सामान्य रीतिसे किया, | है । ( आबू तीर्थकी स्थापनामें कारण कि इन तीनों अति- मन्त्रीश्वर विमलके कार्य में चारोंकी बात साधु और जिसने विघ्न किया, और बादश्रावकोंके लिये प्रायः समान में वश हुआ।) ही लागू होती है। अब जूजूआ-पृथक् पृथक् । श्रावकके योग्य अतिचारका आतंक-सन्ताप, रोग, भय । वर्णन करनेका आरम्भ होने- सिद्ध-लोकमें 'सिद्ध' के रूपमें से विशेषतः ऐसा शब्द | प्रसिद्ध । प्रयोग किया है। जीराउला-मिथ्यात्वी देव (तीर्थ) संका-कंख-विगिच्छा । इस विशेष । गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र | भरडा-एक प्रकारके साधु । ३२ गाथा ६ । [ शिव भक्तोंकी एक जाति । क्षेत्रपाल-लौकिक देव जो कुछ जिसकी मूढताके सम्बन्धमें क्षेत्रोंकी रक्षा करते हैं । 'भरटक-द्वात्रिंशिका' आदि में कथाएँ हैं ] गोगो-नागदेव । आसपाल-आशा-दिशाके पालने- J+ भगत-देवीको मानने वाले अथवा लोकमें इस नामसे प्रसिद्ध वाले इन्द्रादिक दिक्पाल देव । व्यक्ति । पादर-देवता-गाँव-पादरके देव पाठान्तरमे 'भगवंत' शब्द है। लिंगिया-साधुका वेष धारण गोत्र-देवता-गोत्रके देव-देवी।। करनेवाले ! ग्रह-पूजा-ग्रहोंकी शान्तिके लिये | जोगिया-जोगीके नामसे प्रसिद्ध को जानेवाली पूजा। साधु। देवी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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