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मल-मलिन-मैलसे युक्त, मलिन ।। भक्षण होता हो तो उसको दुगंछा नीपजावी-जुगुप्सा को। रोकनेका अपना उत्तरदायित्व कुचारित्रीया - कुत्सित चारित्र- पूरा न किया हो। वाले ।
अधोती-धोती बिना । चारिजीया-चारित्रवाले, चारि- | अष्टपड--मुखकोश - पाखे - आठ वशील।
पड़वाले मुखकोश बिना। अभाव-हुओ-अप्रीति हुई। बिंब प्रत्ये-बिम्ब के प्रति, मूर्तिअनुपबृहणा कीधी-उपबृंहणा
न की, समर्थन न किया हो। वासपी-वासक्षेप रखनेका पात्र । अस्थिरीकरण - स्थिरीकरण न धपधाणु-धूपदानी।
किया हो, धर्मीको गिरते देख । केलि-क्रीडा ।
धर्म मार्गमें स्थिर न किया हो। निवेदियां-नैवेद्य । देव-द्रव्य-देव-निमित्तका द्रव्य, , ठवणायरिय-स्थापनाचार्य । देवके लिये कल्पित द्रव्य ।
पाडवज्यु नहीं-अङ्गीकार नहीं गुरु-द्रव्य-गुरु - निमित्तका द्रव्य, किया।
गुरुके लिये कल्पित द्रव्य । पणिहाण जोग-जुत्तो नायव्वो॥ ज्ञान-द्रव्य-श्रुतज्ञानके निमित्तका इस गाथाके अर्थके लिये देखो द्रव्य ।
सूत्र २८, गाथा ४ । साधारण-द्रव्य--जो द्रव्य जिन- ईर्या -- समिति - ईर्या - समिति
विम्ब, जिन-चैत्य, जिनागम, ! सम्बन्धी अतिचार । साधु, साध्वी श्रावक और अन्य समिति और गुप्तियोंके श्राविका इन सातों क्षेत्र में जहाँ नाम आये वहाँ भी वापरने योग्य हो; वह साधा- ऐसा ही अर्थ समझना। रण द्रव्य ।
डगल-अचित्त मिट्टोके ढेले भक्षित-उपेक्षित - भक्षण करते आदि ।
समय उपेक्षा की हो। जीवाकुल -- भूमिकाए - जीवसे किसी के द्वारा उक्त द्रव्यका । व्याप्त भूमिपर। प्र० २९
जहा
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