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________________ ४३९ शब्दार्थ इस सूत्रमें जो शब्द नवीन | अणशोध्ये-शोधन किये बिना, तथा कठिन हैं, उनके उसके अन्तर्गत अशुद्धिमय .. अर्थ यहाँ दिये जाते हैं। पदार्थको दूर किये बिना। नाम्म-भणिओ० ॥ इस / अणपवेसे -- योगोद्वहनादि क्रिया गाथाके अर्थ के लिये देखो सूत्र द्वारा सिद्धान्त पढ़ने में प्रवेश २८ गाथा १ । किये बिना। सविहु-सब ही। असज्झाय-अण्णो ( ण ) ज्झायकाले विणए-नाणमायारो ॥ माहे-अस्वाध्याय और अनइस गाथाके अर्थके लिये देखो ध्यायके समय में। सूत्र २८ गाथा २। जो संयोग पढ़नेके लिये अयोग्य काल-वेलाए-पढनेके समय । हो, वह अस्वाध्याय कहभण्यो गुण्यो नहीं-पढ़ा नहीं लाता है और जो दिन और पढ़े हुएकी पुनरावृत्ति भी पढ़ने के लिये अयोग्य हो नहीं की। वह अनध्याय - दिवस कूडो-झूठा, असत्य । कहलाता है। तदुभय-सूत्र और अर्थ । | प्रमुख-इत्यादि, वगैरा। काजो-कचरा, निरर्थक वस्तु । । पहले काजो उद्धरना चाहिये, देश्य कज्जल शब्दसे बना फिर दण्ड यथाविधि पडिहुआ है। लेहना चाहिये, तदनन्तर अणउद्धर्ये-निकाले बिना। वसतिका बराबर शोधन दांडो-साधुके रखने योग्य दण्ड । करना चाहिये और क्रियाअणपडिलेहे - पडिलेहण किये पूर्वक स्वाध्यायमें प्रवेश बिना। करना चाहिये। यदि अवसति-उपाश्रयके चारों ओर सौ स्वाध्यायका काल हो अथवा सौ कदम दूर तकका स्थान। । अनध्यायका दिन हो, तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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