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________________ ४३८ नाणाइ-अट्ट पइवय, सम्मसंलेहण-पण-पन्नर-कम्मेसु । बारस-तप-वीरिअ-तिगं, चउवीस-सयं अइआरा ॥ पडिसिद्धाणं करणे०॥ प्रतिषेध अभक्ष्य, अनंतकाय, बहुबीज-भक्षण, महारंभ-परिग्रहादिक कोधां, जीवाजीवादिक सूक्ष्म-विचार सद्दह्या नहीं, आपणी कुमति लगे उत्सूत्र-प्ररूपणा कोधी । __ तथा प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति, अरति, पर-परिवाद, माया-मृषावाद, मिथ्यात्वशल्य ए अढार पाप-स्थान कीधां, कराव्यां अनुमोद्यां होय । ___ दिनकृत्य, प्रतिक्रमण, विनय, वेयावच्च न कीधां, अनेरुं जं कांइ वीतरागनी आज्ञा-विरुद्ध कीg कराव्यु, अनुमोद्यु होय । ए चिहुं प्रकारमाहे अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष-दिवसमांहि सूक्ष्म-बादर जाणता-अजाणतां हुओ होय, ते सविहु मने, वचने कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं ॥ १७ ।। एवकारे श्रावकतणे धर्मे श्रीसम्यक्त्व-मूल बार व्रत एकसो चोवीश अतिचारमांहि जे कोई अतिचार पक्ष-दिवसमांहि सूक्ष्म-बादर जाणतां अजाणतां हुओ होय, ते सविहु मने, वचने, कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ॥ इति अतिचार ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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