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बारमे अतिथि संविभाग- व्रत - विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार
पक्ष - दिवसमांहि० ॥ १२ ॥
संलेखणा तणा पांच अतिचार
इह लोए परलोए० |
इहलोगासंस- प्पओगे, परलोगासंस-प्पओगे, जो विआ संस- प्पओगे; मरणासंस-प्पओगे, कामभागासंस - प्पओगे |
इह लोके धर्मना प्रभाव लगे राज ऋद्धि, सुख, सौभाग्य, परिवार वांछ्या, परलोके देव, देवेन्द्र, विद्याधर, चक्रवर्तीतणी पदवी वांछी, सुख आव्ये जीवितव्य वांछ्युं, दुःख आव्ये मरण वांछ्युं, काम भोगतणी वांछा कीधी ।
संलेखणा विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवसमांहि० ।। १३ ।।
तपाचार बार भेद छ बाह्य, छ अभ्यन्तर
अण सण मृणोअरिआ ० ॥
अणसण भणी उपवास - विशेष पर्वतिथे छती शक्तिए कीधो नहीं, ऊणोदरी व्रत ते कोलिआ पांच सात ऊणा रह्या नहीं, वृत्तिसंक्षेप ते द्रव्य भणी सर्व वस्तुनो संक्षेप कीधो नहीं, रस-त्याग ते विषयत्याग न कीधो, काय-क्लेश लोचादिक कष्ट सह्यां नहीं, संलीनता अंगोपांग संकोची राख्यां नहीं, पच्चक्खाण भांग्यां, पाटलो डगडगतो फेड्यो नहीं, गंठसो, पोरिसी, पुरिमड्ढ, एकासणुं, बेआसणुं, नीवि, आंबिलप्रमुख पच्चक्खाण पारवु विसायुं, बेसतां नवकार न भ ( ग ) ण्यो, उठतां पच्चक्खाण करवु विसायुं, गंठसीयुं, भाग्यं नीवि आंबिल उपवासादि तप करी काचुं पाणी पीधुं, वमन हुआ ।
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