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________________ संति-श्रीशान्तिनाथ नामके सोल- मए-मेरे द्वारा। हवें तीर्थङ्करको। अभिथुआ-नामपूर्वक स्तुति किये च-और। गये। वंदामि-वन्दन करता हूँ। विहुय-रय-मला-रज और कुथु-श्रीकुन्थुनाथ नामके सत्तरहवें मलरूपी कमको दूर करनेवाले। तीर्थङ्करको। विहुय-दूर किये हुए। रयअरं-श्रीअरनाथ नामके अठारहवें बँधनेवाले कर्म । मल-पहले तीर्थङ्करको । बँधे हुए कर्म । च-और। मल्लि-श्रीमल्लिनाथ नामके उन्नी पहीण-जर-मरणा-जरा और सवें तीर्थङ्करको। मरणसे मुक्त। वंदे-वन्दन करता हूँ। जरा-बुढ़ापा, वृद्धावस्था । मरण-मृत्यु । मुणिसुव्वयं-श्रीमुनिसुव्रतस्वामी नामके बीसवें तीर्थङ्करको। चउवीसं पि-चौबीसों। नमिजिणं-श्रीनमिनाथ नामके जिणवरा-जिनवर । इक्कीसवें तीर्थङ्करको। तित्थयरा-तीर्थङ्कर। च-और। मे-मुझपर वंदामि-वन्दन करता हूँ। पसीयंतु-प्रसन्न हों। रिट्टनेमि-श्रीअरिष्टनेमि अथवा | कित्तिय-बंदिय-महिया--कीर्तन, नेमिनाथ नामके बाईसवें वन्दन और पूजन किये हुए, तीर्थङ्करको। मन, वचन और कायसे स्तुति पासं-श्रीपार्श्वनाथ नामके तेईसवें किये हुए। तीर्थङ्करको। कित्तिय-वाचक स्तुति किये हुए। तह-तथा। वंदिय-कायिक स्तुति किये बद्धमाणं-श्रीवर्द्धमानस्वामी अथवा महावीरस्वामी नामके चौबीसवें महिय-मानसिक स्तुति किये तीर्थङ्करको। हुए। च-और। जे ए-जो ये। एवं-इस प्रकार । । लोगस्स-लोकके सम्बन्धमें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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