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________________ २७ शब्दार्थलोगस्स-लोकका, चौदह राज- | सुपासं-श्रीसुपार्श्वनाथ नामके सातवें लोकोंमें । तीर्थङ्करको। उज्जोअगरे-प्रकाश करनेवालोंकी। जिणं-जिनको । धम्म-तित्थयरे-धर्मरूपी तीर्थ-च-और । का प्रवर्तन करनेवालोंकी। वालाका। चंदप्पहं-श्रीचन्द्रप्रभ नामके आजिणे-जिनोंकी, राग-द्वेष विजेता ठवें तीर्थङ्करको। ओंकी। वंदे-वंदन करता हूँ। अरिहंते-अहंतोंकी,त्रिलोकपूज्योंकी। सुविहि-श्रीसुविधिनाथ नामके नौवें कित्तिइस्सं-मैं स्तुति करता हूँ। तीर्थङ्करको। चउवीसं पि-चौबीसों। | च-अथवा। केवली-केवलज्ञान प्राप्त करने__ वालोंकी, केवली भगवानोंकी। पुप्फदंतं-पुष्पदन्तको (श्रीसुविधिउसभं-श्रीऋषभदेव नामके प्रथम नाथका यह दूसरा नाम है)। तीर्थङ्करको । सीअल-सिज्जंस-वासुपुज्जंअजिअं-श्रीअजितनाथ नामके दूसरे श्रीशीतलनाथ नामके दसवें तीर्थङ्करको। तीर्थङ्करको, श्रीश्रेयांसनाथ च-और। नामके ग्यारहवें तीर्थङ्करको वंदे-वन्दन करता हूँ। तथा श्रीवासुपूज्य नामके संभवं-श्रीसम्भवनाथ नामके तीसरे बारहवें तीर्थङ्करको। __ तीर्थङ्करको । च-और । अभिणंदणं-श्रीअभिनन्दन नामके | विमलं-श्रीविमलनाथ नामके तेरहवें ___ चौथे तीर्थङ्करको। तीर्थङ्करको। च-और। 'अणंतं-श्रीअनन्तनाथ नामके चौदसुमइं-श्रीसुमतिनाथ नामके पाँचवें हवें तीर्थङ्करको। ___ तीर्थङ्करको। च-और। च-और। जिणं-जिनको। पउमप्पह-श्रीपद्मप्रभ नामके छठे | धम्म-श्रीधर्मनाथ नामके पन्द्रहवें तीर्थङ्करको। तीर्थङ्करको । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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