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४३० चिंतव्यो, अनंग-क्रीडा कीधी, स्त्रीनां अंगोपांग नीरख्यां, पराया विवाह जोड्या, ढींगला-ढोंगली परणाव्या, काम-भोग तणे विषे तीव्र अभिलाष कीधो। ____ अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, सुहणे-स्वप्नांतरे हुआ, कुस्वप्न लाध्यां, नट, विट, स्त्रीशुं हांसुं कीर्छ ।
चोथे स्वदारा-संतोष व्रत-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष-दिवसमांहि० ॥ ४ ॥
पांचमे परिग्रह-परिमाण-व्रते-पांच अतिचार
धण-धन्न-खित्त-वत्थू० ॥
धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, रूप्य, सुवर्ण, कुप्य, द्विपद, चतुष्पद ए नवविध परिग्रह-तणा नियम उपरांत वृद्धि देखी मूर्छा-लगे संक्षेप न कीधो, माता, पिता, पुत्र, स्त्री-तणे लेखे कीधो, परिग्रह-परिमाण लीधुं नहीं, लइने पढीयुं नही, पढवू विसायुं, अलीधु मेल्यु, नियम विसर्या ।
पांचमे परिग्रह-परिमाण-व्रत-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष-दिवसमांहि ॥ ५॥
छट्टे दिक-परिमाण-व्रते पांच अतिचारगमणस्स य परिमाणे० ॥ ऊर्ध्वदिशि, अधोदिशि, तिर्यग्-दिशिए जवा आववा-तण नियम लई भाग्या, अनाभोगे विस्मृति लगे अधिक भूमि गया, पाठवणी
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