________________
४२९ त्रीजे स्थूल-अदत्तादान-विरमण व्रते पांच अतिचार
तेनाहडप्पओगे०॥ 'घर-बाहिर क्षेत्र खले पराई वस्तु अणमोकली लोधी, वापरो, चोराई वस्तु वहोरी, चोर-धाड-प्रत्ये संकेत कीधो, तेहने संबल दीg, तेहनी वस्तु लोधी, विरुद्ध राज्यातिक्रम कोधो, नवा, पुराणा, सरस, विरस, सजीव, निर्जीव वस्तुना भेल-संभेल कीधा, कूडे काटले, तोले, माने, मापे, वहोर्या, दाण-चोरी कीधी, कुणहने लेखे वरांस्यो, साटे लांच लीधी, कूडो करहो काढयो, विश्वासघात कीधो, पर-वंचना क्रीधो, पासंग कूडां कोधां, दांडी चडावी, लहके-त्रहके कूडां काटलां, मान, मापां कीधां। ___ माता, पिता, पुत्र, मित्र, कलत्र वंची कुणहिने दोधुं, जुदी गांठ कीधी, थापण ओळवी, कुणहिने लेखे-पलेखे भूलव्यु, पडी वस्तु ओळवो लीधी।
त्रीजे स्थूल-अदत्तादान-विरमण व्रत-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष-दिवसमांहि० ॥ ३ ॥
चोथे स्वदारासंतोष-परस्त्रीगमन-विरमण व्रते पांच अतिचारअपरिग्गहिया-इत्तर० ॥
अपरिगृहीता-गमन, इत्वर-परिगृहीता-गमन कीधं, विधवा, वेश्या, परस्त्री, कुलांगना, स्वदारा शोक (क्य)-तणे विषे दृष्टि-विपयास कीधो, सराग वचन बोल्यां, आठम चोदश अनेरी पर्वतिथिना लई भांग्या, घरघरणां कोधा कराव्यां, वर-बहू वखाण्यां, कुविकल्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org