________________
४०९
ते सुविक्कमा कमा, तयं तिलोय-सव्व-सत्त-संतिकारयं पसंत-सव्व-पाव-दोस-मेस हं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥३१।। नारायओ ॥ छत्त-चामर-पडाग-जूअ-जव-मंडिया, झयवर-मगर-तुरय-सिरिवच्छ-सलछणा । दीव-समुद्द-मंदरे दिसागय-सोहिया, सत्थिअ-वसह सीह-रह-चक्क-वरंकिया ॥ ३२॥ ललिअयं ।। सहाव-लट्ठा सम-प्पइट्ठा, अदोस-दुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा । पसाय-सिट्टा तवेण पुट्ठा, सिरीहिं इट्ठा रिसीहिं जुट्ठा ।। ३३ ।। वाणवासिया ।। ते तवेण धुअ-सव्वपावया, सव्व-लोअ-हिअ-मूल-पावया । संथुआ अजिअ-संति पायया, हुतु मे सिव-सहाण-दायया ॥३४॥ अपरांतिका ।। एवं तव-वल-विउलं, थुअं मए अजिअ-संति-जिन-जुअलं । ववगय-कम्म-रय-मलं, गई गयं सासयं विउलं ॥३५॥ गाहा ॥ तं बहु-गुण-प्पसायं मुक्ख-सुहेण परमेण अविसायं । नासेउ मे विसायं, कुणउ अ परिसा वि अ पसायं ॥३६॥ गाहा ॥ तं मोएउ अ नंदि, पावेउ नंदिसेणममिनंदि। परिसा वि अ सुहनंदि, मम व दिसउ संजमे नंदि ॥३७॥ गाहा ॥ पक्खिअ-चाउम्मासिअ-संवच्छरिए अवस्स-मणिअव्यो । सोअव्वो सव्वेहिं, उवसग्ग-निवारणो एसो ॥३८॥ गाहा ।। जो पडइ जो अ निसुणइ, उभओ कालं पि अजिअसंति-थयं । न हु हुंति तस्स रोगा, पुन्बु पन्ना वि नासंति ॥ ३९॥ गाहा ॥ जइ इच्छह परम-पयं, अहवा कित्ति सुवि
२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org