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वरुणो-वरुण ।
| गोमेहो-गोमेध । भिउडी-भृकुटि ।
| पास-मायंगा-पाव और मातङ्ग। अर्थ-सङ्कलना___गोमुख, महायक्ष, त्रिमुख, यक्षेश, तुम्बरु, कुसुम, मातङ्ग, विजय, अजित, ब्रह्म, मनुज, सुरकुमार, षण्मुख, पाताल, किन्नर, गरुड, गन्धर्व, यक्षेन्द्र, कुबेर, वरुण, भकूटि, गोमेध, पार्श्व और मातङ्ग ये चौबीस यक्ष ।। ७-८॥
देवीओ चक्केसरि-अजिआ-दुरिआरि–कालि-महकाली । अच्चुअ-संता-जाला, सुतारयासोय-सिरिवच्छा ॥९॥ चंडा विजयंकुसि-पन्नइत्ति-निव्वाणि-अच्चुआ धरणी । वइरुट्ट-छुत्त-गंधारि-अंब-पउमावई-सिद्धा ॥१०॥ इय तित्थ-रक्खण-रया, अन्ने वि सुरा सुरीउ चउहा वि । वंतर-जोइणि-पमुहा, कुणंतु रक्खं सया अम्हं ॥११॥ शब्दार्थदेवीओ-देवियाँ ।
विजयंकुसि-पन्नइत्ति-निव्वाणिचक्केसरि-अजिआ-दुरिआरि- अच्चुआ-विजया, अङ्कुशी,
कालि-महकाली-चक्र श्वरी, प्रज्ञप्ति ( पन्नगी ), निर्वाणी अजिता, दुरितारि, कालो,
और अच्युता। महाकाली।
धरणी-धारिणी। अच्चुअ-संता-जाला-सुतारया
वइरुट्ट-छुत्त - गंधारी - अंबसोय-सिरिवच्छा - अच्युता,
पउमावई-सिद्धा - वैरोटया, शान्ता, ज्वाला, सुतारका,
अच्छुप्ता, गन्धारी, अम्बा, अशोका, श्रीवत्सा।
पद्मावती और सिद्धायिका । चंडा-चण्डा।
| इय-इस प्रकार ।
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