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तित्थ-रक्खण-रया-तीर्थका रक्षण | वि-भी। करने में तत्पर।
वंतर-जोइणि - पमुहा-व्यन्तर, तित्थ-तीर्थ । रक्खण-रक्षण । ।
योगिनी आदि। रया-तत्पर ।
वंतर - व्यन्तर । जोइणिअन्ने-दूसरे।
योगिनी । पमुहा-आदि । वि-भी।
कुणंतु-करें। सुरा-देव।
रक्खं-रक्षा। सुरीउ-देवियाँ ।
सया-सदा। चउहा-चार प्रकारके।
| अम्हं-हमारी। रण. अर्थ-सङ्कलना___ चक्रेश्वरी, अजिता, दुरितारि, काली, महाकाली, अच्युता, शान्ता, ज्वाला, सुतारका, अशोका, श्रीवत्सा, चण्डा, विजया, अङ्कुशी, प्रज्ञप्ति (पन्नगी), निर्वाणी, अच्युता (बला), धारिणी, वैरोटया, अच्छुप्ता, गान्धारी, अम्बा, पद्मावती और सिद्धायिका ये शासनदेवियाँ तथा भगवान्के शासनका रक्षण करनेमें तत्पर ऐसे अन्य चारों प्रकारकी देव-देवियाँ तथा व्यन्तर, योगिनी आदि दूसरे भी हमारी रक्षा करें ॥९-१०-११ ।। मूलएवं सुदिहि-सुरगण-सहिओ संघस्स संति-जिणचन्दो । मज्झ वि करेउ रक्खं, मुणिसुंदरसूरि-थुय-महिमा ॥१२।।
शब्दार्थ
एवं-इस प्रकार ।
सुदिट्ठि-सम्यग्दृष्टि । सुरगणसुदिट्टि-सुरगण - सहिओ-सम्य- देवोंका समूह। सहिअ-सहित ।
ग्दृष्टि-देवोंके समूह सहित। । संघस्स-श्रीसङ्घकी।
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