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________________ मूल [ ८ प्रास्ताविक - पद्यानि ] (१) [ उपजाति ] नृत्यन्ति नृत्यं मणि - पुष्प - वर्षं, सृजन्ति गायन्ति च मङ्गलानि । स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान्, कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके ||२०|| शब्दार्थ नृत्यन्ति नृत्यं - विविध प्रकारके नृत्य करते हैं । मणि - पुष्प - वर्षं पुष्पों की वर्षा । ३८९ सृजन्ति - करते हैं । गायन्ति गाते हैं । च - और । रत्न और मङ्गलानि - मङ्गल, माङ्गलिक । अष्टमङ्गलमें आठ आकृतियोंका आलेखन भी होता है - वह इस प्रकार : - ( १ ) स्वस्तिक, ( २ ) श्रीवत्स, (३) नन्द्यावर्त्त Jain Education International (४) वर्धमानक, (५) भद्रा - सन, (६) कला, (७) मत्स्य - युगल और (८) दर्पण) स्तोत्राणि - स्तोत्र । गोत्राणि - गोत्र, और वंशावलि | तीर्थङ्करके गोत्र पठन्ति - बोलते हैं । मन्त्रान्-मन्त्रोंको । कल्याणभाजः - पुण्यशाली । हि वस्तुत: । जिनाभिषेके - जिनाभिषेकके सममें, स्नात्रक्रिया के प्रसङ्गपर | अर्थ- सङ्कलना - पुण्यशाली जन जिनेश्वरकी स्नात्रक्रिया के प्रसङ्गपर विविध प्रकार के नृत्य करते हैं, रत्न और पुष्पोंकी वर्षा करते हैं, (अष्टमङ्गलादिका आलेखन करते हैं तथा ) माङ्गलिक-स्तोत्र गाते हैं और तीर्थङ्करके गोत्र, वंशावलि एवं मन्त्र बोलते हैं ।। २० ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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