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भव्यजनैः सह-भव्यजनोंके साथ । | पूजा-यात्रा - स्नानादि - महोसमेत्य-आकर।
त्सवान्तरमिति कृत्वा - स्नानपीठे-स्नात्र पीठपर।
पूजा-महोत्सव (रथ ) यात्रास्नात्रं-स्नात्र ।
महोत्सव, स्नात्र-यात्रा महोविधाय-करके।
त्सव आदिको पूर्णाहुति करके । शान्तिम्-शान्तिकी।
कणं दत्त्वा-कान देकर ।
निशम्यतां निशम्यतां-सुनिये उद्घोषयामि - उद्घोषणा
सुनिये। करता हूँ।
स्वाहा-स्वाहा । ततः-तो।
यह पद शान्तिकर्मका पल्लव है।
अर्थ-सङ्कलना
. हे भव्यजनो! इसी ढाई द्वीपमें भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रमें उत्पन्न सर्व तीर्थङ्करोंके जन्मके समयपर अपना आसन कम्पित होनेसे सौधर्मेन्द्र अवधिज्ञानसे ( तीर्थङ्करका जन्म हुआ ) जानकर, सुघोषा घण्टा बजवाकर ( सूचना देते हैं, फिर ) सुरेन्द्र और असुरेन्द्र साथ आकर विनय-पूर्वक श्रीअरिहन्त भगवान्को हाथमें ग्रहणकर मेरुपर्वतके शिखरपर जाकर जन्माभिषेक करनेके पश्चात् जैसे शान्तिकी उद्घोषणा करते हैं, वैसे ही मैं ( भी ) किये हुएका अनुकरण करना चाहिये ऐसा मानकर 'महाजन जिस मार्गसे जाय, वही मार्ग,' ऐसा मानकर भव्यजनोंके साथ आकर, स्नात्र पोठपर स्नात्र करके, शान्तिको उद्घोषणा करता हूँ, अतः आप सब पूजा-महोत्सव, ( रथ ) यात्रा-महोत्सव, स्नात्र-महोत्सव आदिकी पूर्णाहुति करके कान देकर सुनिये ! सुनिये ! स्वाहा ॥२॥
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