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________________ . ३७४ भव्यजनैः सह-भव्यजनोंके साथ । | पूजा-यात्रा - स्नानादि - महोसमेत्य-आकर। त्सवान्तरमिति कृत्वा - स्नानपीठे-स्नात्र पीठपर। पूजा-महोत्सव (रथ ) यात्रास्नात्रं-स्नात्र । महोत्सव, स्नात्र-यात्रा महोविधाय-करके। त्सव आदिको पूर्णाहुति करके । शान्तिम्-शान्तिकी। कणं दत्त्वा-कान देकर । निशम्यतां निशम्यतां-सुनिये उद्घोषयामि - उद्घोषणा सुनिये। करता हूँ। स्वाहा-स्वाहा । ततः-तो। यह पद शान्तिकर्मका पल्लव है। अर्थ-सङ्कलना . हे भव्यजनो! इसी ढाई द्वीपमें भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रमें उत्पन्न सर्व तीर्थङ्करोंके जन्मके समयपर अपना आसन कम्पित होनेसे सौधर्मेन्द्र अवधिज्ञानसे ( तीर्थङ्करका जन्म हुआ ) जानकर, सुघोषा घण्टा बजवाकर ( सूचना देते हैं, फिर ) सुरेन्द्र और असुरेन्द्र साथ आकर विनय-पूर्वक श्रीअरिहन्त भगवान्को हाथमें ग्रहणकर मेरुपर्वतके शिखरपर जाकर जन्माभिषेक करनेके पश्चात् जैसे शान्तिकी उद्घोषणा करते हैं, वैसे ही मैं ( भी ) किये हुएका अनुकरण करना चाहिये ऐसा मानकर 'महाजन जिस मार्गसे जाय, वही मार्ग,' ऐसा मानकर भव्यजनोंके साथ आकर, स्नात्र पोठपर स्नात्र करके, शान्तिको उद्घोषणा करता हूँ, अतः आप सब पूजा-महोत्सव, ( रथ ) यात्रा-महोत्सव, स्नात्र-महोत्सव आदिकी पूर्णाहुति करके कान देकर सुनिये ! सुनिये ! स्वाहा ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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