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________________ ३७५ मूल[ ३ शान्तिपाठ ] (१) ॐपुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां, भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोकमहितास्त्रिलोकपूज्यास्त्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योतकराः ॥३॥ शब्दार्थ ॐॐकार परमतत्त्वकी विशिष्ट भगवन्तः-भगवान् । संज्ञा, प्रणवबीज । | अर्हन्तः-अरिहन्त। एक अक्षर के रूपमें यह परम- | सर्वज्ञाः -सर्वज्ञ । तत्त्वका वाचक है और | सर्वदर्शिनः-सर्वदर्शी । पृथक् पृथक् करें तो पञ्च- । त्रिलोकनाथाः-त्रिलोकके नाथ । परमेष्ठीका वाचक हैं ।x त्रिलोक - महिताः - त्रिलोकसे पुण्याहं पुण्याह-आजका दिन | पूजित ! पवित्र है, यह अवसर त्रिलोक - पूज्याः - त्रिलोकके माङ्गलिक है। पूज्य। पुण्य-पवित्र । अहन्-दिन । त्रिलोकेश्वराः-त्रिलोकके ईश्वर । प्रीयन्तां प्रीयन्तां-प्रसन्न हों ! त्रिलोकोद्योतकराः- त्रिलोकमें प्रसन्न हों। उद्द्योत करनेवाले। अर्थ-सङ्कलना___ॐ आजका दिन पवित्र है, आजका अवसर माङ्गलिक है। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकके नाथ, त्रिलोकसे पूजित, त्रिलोकके पूज्य, त्रिलोकके ईश्वर, त्रिलोकमें उद्द्योत करनेवाले अरिहन्त भगवान् प्रसन्न हों, प्रसन्न हों ॥ ३ ॥ x ॐकारक विशेष विवेचनके लिये देखो प्रबोधटीका भाग २ रा, पृ. ४६८ प्रबोधटीका भाग ३ रा, पृ. ५८४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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